दोहे-निधि चौधरी

दोहे

गुरु ब्रह्मा अवतार है, गुरु ही विष्णु रूप।
गुरु सागर है ज्ञान का, गुरु पिता स्वरूप।।

बन अज्ञानी फिरे जगत, लाख रहे अनजान।
शीश चरण में राखिए, हो जा फिर विद्वान।।

गुरु सूर्य की रौशनी, गुरू चंद्र आलोक।
आखर आखर जोड़ कर, तुझे बना दे श्लोक।।

गुरु वंदना तुम करो, कर न कभी अपमान।
गुरु से काली तम मिटे, गुरु है दीप समान।।

गुरु का आदर कीजिए, गुरु को देव जान।
गुरु रस परम् ज्ञान का, पी लो अमृत मान।।

निधि चौधरी
प्राथमिक विद्यालय सुहागी
किशनगंज, बिहार

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