गाँधी को गढ़ना होगा
मानवता के मनोभाव को निर्मल से करने के लिए,
मधुर जीवन के सरस भाव को अमृतमय करने के लिए,
समभाव और सहजयोग में मानव को रचने के लिए,
हमको भी तो गाँधी के आदर्शों को जीना होगा,
सत्य अहिंसा सर्वोदय के ढाँचे में ढालना होगा।
नहीं ढलोगे सहज सुलभ तो बोलो क्या कर पाओगे,
बापू के सपनों का भारत बोलो कैसे पाओगे,
स्वयं में जो तुम सत्य अहिंसा का न अलख जगाओगे ।
जब तक क्रंदन इस धरती पर चैन तो कैसे पाओगे,
रामराज्य का सपना तुम कैसे पूरा कर पाओगे।
विश्व-बंधुत्व के अग्रदूत हम विश्वशांति के वाहक है,
हम वसुधा के हँसी खुशी और प्रेम शक्ति के कारक है,
औरों को भी गाँधी के दर्शन का दीप जलाकर के,
स्वयं में फैले अंधकार को निश्चित ही हरना होगा।
गाँव -गाँव में हर जीवन के पीड़ा को हरने के लिए,
स्वयं के भी बिगड़े चरित्र को निर्मल सा करने के लिए
हमको भी तो अंतर्मन में गाँधी को गढ़ना होगा,
पर उपदेश देने से पहले पहल स्वयं करना होगा।
स्नेहलता द्विवेदी आर्या
मध्य विद्यालय शरीफगंज, कटिहार