गंगा धारा-प्रभात रमण

गंगा धारा

ये जीवन एक सरिता है
गतिमान है हरपल
बिता हुआ नहीं देखते
बस देखते हैं कल
बचपन खेल में बिता
जवानी दौड़ में बिता
बुढापा तो अनुभव ढेर सारा है
जिंदगी अपने लिए जिये
मरण के बाद बस एक सहारा है
ये गंगा की धारा है।।
यहाँ सब पाप है धोये
यहाँ बस पूण्य ही बोये
यहाँ न धर्म, जाती है
यहाँ न कोई पापी है
यहाँ मिलते हैं सब आकर
इसी ने सबको उबारा है
ये गंगा की धारा है।।
हिमालय से निकलती है
भगीरथ ने उतारा है
जगत के त्रास हरने को
शिव ने शीश धारा है
ये पूण्य सुरसरि है
हर पाप स्वीकारा है
ये गंगा की धारा है।।
ये कर्म है सिखाती
ये धर्म है बताती
ये सत्य है दिखाती
ये मनुष्यत्व है सिखाती
ये जीवन पाठ है पढ़ाती
इसकी मधुर लहरों ने
जीवनपथ निहारा है
ये गंगा की धारा है।।
सारी गंदगी लेकर भी
ये मैली नहीं होती
अभद्र इसकी कभी
शैली नहीं होती
सब इसके पास आते हैं
अंजुरी जल ले जाते हैं
जो इसके पास न आया
लव पर रख इसे
उसने भी अपना लोक सँवारा है
ये गंगा की धारा है।।
ये गंगा की धारा है।।

प्रभात रमण
मध्य विद्यालय किरकिचिया
फारबिसगंज
अररिया

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