गंगा
मोक्षदायिनी गंगा
सर्वस्व समाहित
कर जगत को
निरंतर करती
दुलार मां समान।
कल्याणकारी गंगा
इक बूंद से तृप्ति
हो ऐसी ज्यों
बुझी तृष्णा
अनंत जन्मों की।
पतितपावनी गंगा
तेरे जल से सारे
दोष मिटें तन की
मन की और
संपूर्ण जीवन की।
शिव जटा में
पाकर स्थान हे गंगे
तू धन्य हुई और
पृथ्वीवासी का
भी कल्याण किया।
नूतन कुमारी
पूर्णियाँ, बिहार
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