जिंदगी का सार
यूं ही कभी आसमाँ को निहारते,
देखा मैंने, शाम के धुंधलके में,
चाँद का निकलना,
शुभ्र, धवल, चमकता चाँद,
आभा बिखेरता किसी,
देवता के समान,
यूं ही अचानक उमड़ते-घुमड़ते,
बादलों के कुछ टुकडे़,
छा जाने को बेताब थे,
चाँद के उस धवल रूप पर,
छुप गया था चाँद,
बादलों की ओट में,
खो गई थी,
आभा फिर से कालिमा में,
कुछ क्षण तम,
जीत रहा था, रौशनी से,
पर जीतकर उन बादलों के,
साये तले से चमचमाता चाँद,
फिर से नजर आया,
बस ऐसा ही तो,
रूप है इस जिंदगी का,
हर निराशा, नाउम्मीदी के,
साये तले से,
जीत जाती है हमेशा ,
उम्मीद और आशा,
हर अंधेरी रात के,
साये तले से खूबसूरत
सुबह का आगाज होता,
बीत जाएगा ये दौर भी
कालिमा का, अगर हमने हौसला
हिम्मत न हारा,
जीत जाएंंगे जंग,
ये हम जिंदगी का,
अगर बनें हम,
एक-दूसरे का सहारा।
संगीता कुमारी सिंह
शिक्षिका भागलपुर