हार-जीत
हो राहों में चाहे बाधा हजार
जीवन की है यही ललकार
हार जीत तो लगी है जग में
हँसकर उसे तू कर स्वीकार।
है दूर मंजिल तो क्या भय
हैं पर्वत ऊँचे तो क्या भय
होता नाम उसी का जग में
पथ पर नित चला जो निर्भय
गहन तम को चीरकर भी
करता आलोकित घर संसार
हार जीत तो लगी है जग में
हँसकर उसे तू कर स्वीकार।
जल रहा क्षण क्षण दिनकर
धूमिल दिशाएँ, नीरव अंबर
गिर रहे हैं जो वज्र नभ से
अंतस भरे उर-हिम-गह्वर
उर के गम को पिघलाकर
सींच ले अपना दीप्त संसार
हार जीत तो लगी है जग में
हँसकर उसे तू कर स्वीकार।
क्षुब्ध जलधि में उठे हिलोर
या दुर्गम हो कर्मपथ चहुँ ओर
उत्तुंग शिखर को वही चढ़ेगा
हौसलों संग जो बढ़े चहुँ ओर
पुष्प सम खिलेंगे राहों के शूल
कर ले उसे तू अब अंगीकार
हार जीत तो लगी है जग में
हँसकर उसे तू कर स्वीकार।
अर्चना गुप्ता
म. वि . कुआड़ी
अररिया बिहार