हमें उड़ने दो
हमारे पंख हौसलों से हैं,
हमारी उड़ान क्षितिज तक,
जहां ज़मीं और आसमां मिलते हैं।
हम बच्चे बिहार के
हमें नया इतिहास लिखने दो ना।
नवाचार से पढ़ रहे हैं,
हमें कुछ नया रचने दो ना।
ये नया आयाम है,
हमारी कल्पनाओं का
हम सरकारी स्कूल के बच्चे
हमें गर्व से कहने दो ना।
नीले वस्त्र पहनकर,
हमें नभ को छुने दो ना।
जहां हम जमीन हैं, सभी हैं आकाश,
वहीं हमें शिक्षा का हकदार होने दो ना।
लिखेंगे कल का नवीन संसार,
हमें शिक्षक रूपी तरूवर की छाया दे दो ना।
हमें उड़ने दो ना,
हमें उड़ने दो ना।
ज्योति कुमारी
चांदन, बांका
(स्वरचित कविता)
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