हर जंग जीते हैं जीतेंगे इसे
वक्त के मिजाज को यूं भांप रखो
घर से बाहर चेहरा ढांक रखो।
अभी साथ-साथ रहना ठीक नहीं
हर वक्त दो गज दूरी माप रखो।
जब भी बाहर से तुम आओ सदन
जूते उतार, पांव-कर मांज रखो।
यह जिन्दगी इक नेमत है, जानो
ताउम्र जीने की ललक पाल रखो।
इस रोग की दवा सजगता है फकत
बस इतनी सी समझ पास रखो।
हर जंग जीते हैं, जीतेंगे इसे
मन में विश्वास अटल ठान रखो।
संजीव प्रियदर्शी
फिलिप उच्च विद्यालय बरियारपुर, मुंगेर
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