हरा पेड़ मत काटे कोई
हरे पेड़ मत काटे कोई,
शुद्ध हवा नहीं मिल पाएंगे।
पेड़ अगर कट गए जो सारे,
जंगल जीवन न बच पाएंगे॥
जंगल में ही रहते वन्य जीव सारे,
मजबूरन शहर को आएंगे।
हरे पेड़ मत काटे कोई,
जंगल जीवन न बच पाएंगे॥
भोजन हैं उनके फल और पत्ते,
गर उन्हें नहीं ये मिल पाएंगे।
तो अपने घर में आकर बच्चों,
वे ऊधम खूब मचाएंगे, भोजन हमें बनाएंगे॥
हरे पेड़ मत काटे कोई..
पेड़ों से मिलती छाँव पथिक को,
भला कहाँ रुक वे सुस्ताएँगे ?
तपती धूप में जो पांव जलेंगे तो,
वे श्राप ही हमें दे जाएंगे॥
हरे पेड़ मत काटे कोई..
पेड़ों से ही मिलती हवा शुद्ध वर्षा जल,
नदियां बहती कल-कल निश्छल।
गर सब नष्ट हो जाएंगे,
फिर तो हम सब मर जाएंगे॥
हरे पेड़ मत काटे कोई..
हरे पेड़ से ही जीवन सारा,
हरियाली में रहती अपनी धारा।
फिर भूक्षरण न रुक पाएंगे,
तो प्यारे घर हम कहाँ बनाएंगे ?
हरे पेड़ मत काटे कोई..
पेड़ पौधे जीव-जंतु सारे,
सब हैं बंधु मित्र हमारे।
हम तो रहते अपनो घर में॥
सोचो भला कहाँ वे रात गुजारे ?
निज लालच स्वार्थ में अपने,
घर उनके तो उजड़ जाएंगे॥
हरे पेड़ मत काटे कोई
हरे पेड़ मत काटे कोई..
(स्व रचित)
सुनिल कुमार
राजकीय उत्क्रमित मध्य/ माध्यमिक विद्यालय, पचरुखा, बगहा-2, पश्चिम चम्पारण (बिहार)