हे गुरुवर
जब था मन कोरा मेरा
कलम पकड़ना आपने सिखाया
आरी तिरछी लकीरों से
गुरूवर ने सुलेख लिखाया
रोम रोम कृतज्ञ गुरूवर
आपके अनंत उपकारों से
जीवन आज बना मधुवन
गुरूवर के शुभ संस्कारों से ।
जब था मैं कच्ची माटी
कुंभकार बन आप गुरूवर
अनगढ को सुगढ बनाया
गुरूवर की मीठी थपकी
अवगुणों को दूर किया
पा स्नेहिल आलिंगन
कंटक पथ पुष्प खिलाया
छंट तिमिर नव प्रभात आया।
जीवन का गणित सिखाकर
शिष्टाचार का बोध कराया
अध्यात्म व विज्ञान समन्वय
निज संस्कृति का भान कराया
पुरूष प्रकृति का भेद गहाकर
सार असार का मर्म बताया
सुना संत आख्यान
सदज्ञान का दीप जलाया।
आत्म परमात्म का संलयन बता
जीवन नैया पार लगाया
हे गुरुवर, हे ज्योतिर्पूंज
सर्वत्र व्याप्त तेरी पावन छाया
मनुजता का श्रेय आपको
आपके अनंत उपहारों को
हे गुरुवर शत शत नमन
समर्पित शीश अश्रुपुष्प नयन।
दिलीप कुमार गुप्ता
प्रधानाध्यापक म. वि. कुआड़ी
अररिया बिहार