हे सृजनहार सुन ले पुकार
हे सृजनहार ! मेरी सुन ले पुकार
हिय में बहे सदा प्रेम की बयार।।
निर्मल और शुद्ध होवे व्यवहार
कर सकूंँ प्राणियों से सम प्यार।।
भक्ति से पुष्पित हो यह परिवार
रात-दिन घर में होवे जयकार।।
गुणमय गुणातीत तुम उद्धारक
कर दे भक्तों को, भव से पार।।
अज्ञान तिमिर में भटक रहा मैं
ज्ञान की जोत कर दे उजियार।।
सत्य की राह पर चलूँ मैं निशदिन
ऐसा ही भर दे तुम पुण्य विचार।।
ह्रदय में धैर्य धीर वीरत्व का भाव
नित् सरसा दे हे सृष्टि के करतार।।
जिस माता-पिता ने जन्म दिया है
नित् सेवा करूँ और बढ़ाऊँ प्यार।।
अपनी बोली से नफ़रत को दूर कर
भर दूँ दिल में स्नेह प्रेम दया का सार।।
दीनों के तुम दु:ख हरण हो प्रभु जी
दुःख उबारने का तुम भर दे विचार।।
ऐसी अटल भक्ति, शक्ति दे भरतार
ताकि जहाँ को बनाऊँ दिव्य अपार।।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ भागलपुर, बिहार