हिन्दी-जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

Jainendra

हिन्दी

हिन्दी भारत की है मातृभाषा,
फूले-फले यह है अभिलाषा।
जन गण मन की शान हिन्दी,
भारत की पहचान है हिन्दी।
युगों युगों से जुंवा पर सबकी,
बनीं हुई जन जन की भाषा।।
पढ़ना बहुत आसान है हिन्दी,
बोलना हमारा सम्मान है हिंदी।
सदियों से इसे ऋषि मुनियों ने,
जिसको खून पसीने से तराशा।।
पूरब से पश्चिम सुदूर तक फैली,
उत्तर में मिलती दक्षिण की शैली।
एकता की अटूट धागे में पिरोती,
दिखाती भविष्य की सुनहरी आशा।।
भजन, गीत हो या कि कविता,
रचनाओं की बहती नित्य सरिता।
अपनाया है सब सरस्वती पुत्रों ने,
सूर, कबीर, तुलसीदास, रैदासा।।
गीतों की जब महफिल सजती है,
सुरों की अद्भुत सरिता बहती है।
श्रोता दीर्घा अपने सांसों को थामें,
रहता हमेशा प्यासा का प्यासा।।
रामायण और गीता ज्ञान है हिंदी,
मेरे भारत का अभिमान है हिंदी।
पूरी दुनिया में है अलख जगाती,
हमारी प्यारी यह मातृ भाषा।।

जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

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