हिंदी सबको जोड़ने वाली
तेरी तोतली जुबान से
तुतलायी हूँ
लोरियों संग झूम-झूम
तुम्हें मीठी नींद सुलायी हूँ।
तेरी किलकारी में मैं ही
पुलक-पुलक कर किलकी हूँ।
मैं तेरी मातृभाषा माँ की
स्नेह-वात्सल्य सी छलकी हूँ।
सहज, सरल, सुमधुर मैं
जनजीवन में घुली मिली हूँ
शिक्षा का माध्यम बन मैं
ज्ञान-पुष्प सी खिली हूँ।
संस्कृत की उत्तराधिकारिणी
साहित्य की प्रखर वाणी हूँ
विविध भाषा-बोली सबकी
मैं सखी-सहेली सुहानी हूँ।
हे! हिन्द के रहने वालों मैं हिंदी
सबको आपस में जोड़ने वाली हूँ
अपने अनुपम कृत्य से ही
भारत की राजभाषा कहलायी हूँ।
अपने घर में ही परायों-सा व्यवहार होता
देख-देख सिर मैं धुनती रहती हूँ
इतिहास बनकर न रह जाऊँ
सोच-सोच आहें भरती हूँ।
रखो मेल-मिलाप सबसे
पर मेरा स्थान न गैरों को दो
मिटाकर निज भाषा की पहचान
न मान औरों को दो।
मैं आगे बढूँ, नये कीर्तिमान गढ़ूँ
बस यही मेरी अरमान है
मैं ‘हिन्दी’ मेरी आन-बान-शान ही
तुम्हारी सच्ची पहचान है।
रानी कुमारी
पूर्णियाँ, बिहार