हिन्दी से है हमारी पहचान
हिन्दी हमारी एकता, हिन्दी ही हमारी जान।
हिन्दी के बिना हम हैं अजनबी,
हिन्दी से है हमारी पहचान॥
हिन्दी ने हमें जन्म दिया, हिन्दी है प्रधान।
हिन्दी को न भूल सकेंगे, हिन्दी है अभिमान॥
रग-रग में है हिन्दी समाया, चलना बोलना हिन्दी ने सिखलाया।
हिन्दी के बिना अस्तित्व नही, हिन्दी है हमारी जान॥
मातृत्व-सा आभास है होता, पर-देश में जब मन है रोता।
तब हिन्दी ही है ढाढ़स बॅंधाता, जब हिन्दी में कोई बात है होता॥
हिन्दी से है जन्म का नाता, हिन्दी ही संस्कार है॥
हिन्दी की पहचान हमीं से, हम पर ये उपकार है॥
देश को एक सूत्र में बांध, सबको गले लगाए।
ऊँच-नीच भेद-भाव मिटाकर, सब पर स्नेह लुटाए॥
हिन्दी हमारी एकता, है वो अपनी आन-बान-शान।
हिन्दी के बिना हम अधूरे, हिन्दी से ही हमारी पहचान॥
(स्वरचित)
सुनिल कुमार
(प्रखंड स्नातक शिक्षक, हिन्दी)
बगहा, पश्चिम चम्पारण, बिहार