जख्मों को सहलाते रहिये-स्नेहलता द्विवेदी आर्या

ज़ख्मों को सहलाते रहिये

दिल की रीत निभाते रहिये,
जख्मों को सहलाते रहिये।
संकट में है पड़ी मानवता,
मानव धर्म निभाते रहिये।

जंग कठिन है रण है बाकी,
अपना धर्म निभाते रहिये।
देखो जीवन बिन सब सुना,
जीवन ज्योति जलाते रहिये।

संघर्षों में है लगे जो योद्धा,
उनका साथ निभाते रहिये।
छाले दिखते नख-शिख दिल पर,
मरहम तनिक लगाते रहिये।

संघर्षों के घट पल पल में,
धैर्य का कुसुम खिलाते रहिये।
मन का सम्बल बनकर सबके,
जख्मों को सहलाते रहिये।

प्रतिपल जीवन पर नव संकट,
मानव मूल्य बढ़ाते रहिये।
दिखता कोई भी संकट में,
जख्मों को सहलाते रहिये।

स्नेहलता द्विवेदी “आर्या”
मध्य विद्यालय शरीफगंज, कटिहार

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