जाओ न तुम दिसंबर
यूं न तुम जाओ दिसंबर,
उदास है धरती और अंबर।
मौन हैं चारों दिशाएं
कांपती चल रही हवाएं।
कोहरे का चादर ओढ़कर,
उम्मीद सबका तोड़कर।
मांगों मत हमसे विदा,
तुम प्यारे हो सबसे सदा।
बरस भर का साथ था,
हर ख़ुशी में तेरा हाथ था।
जाओ न तुम मूंह मोड़कर,
मौसम को अपने छोड़कर।
पर अगर तुम जाओगे,
वादा करो तुम आओगे।
जीवन में जब तक सांस है,
उम्मीद की एक आस है।
आना और जाना रीत है,
पर हम तेरे मनमीत हैं।
अगले बरस हम मिलेंगे,
फूल दिल के फिर खिलेंगे।
स्वरचित एवं मौलिक
डॉ. अनुपमा श्रीवास्तवा
R. k. m +2 school
मुजफ्फरपुर, बिहार
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