जीवन की उलझनें
बैठी थी आज थोड़ी देर को
अपने घर के बालकनी में,
समय अपने मंथर गति से
आगे बढ़ रहा था,
हवा भी धीरे-धीरे बहती हुई
मानो अपने होने का
एहसास कराने को आतुर थी ।
मैं बिलकुल भाव-शून्य
अपने ही विचारों में उलझी हुई
चुप चाप अपने अन्तर्मन को
टटोलने का प्रयास कर रही थी
मैं सोंच रही थी कि
जीवन में सब कुछ
आसान नहीं होता
इन्सान जैसा चाहता है
वैसा बिल्कुल नहीं होता
हर इन्सान एक कठपुतली है
जिसका डोर ऊपर वाले के
हाथ में है
वो जैसे हमें नचाता है
हम नाचने को विवश होते हैं
उसकी मर्जी के बिना
एक पत्ता भी नहीं हिल सकता
तो क्यों ना हम कुछ ऐसा करें
जिससे हमारे देश हमारे
समाज का उत्थान हो,
हम ऐसा-वैसा कुछ भी नहीं करें
जिससे किसी को तकलीफ हो ।
दूसरों की खुशी में ही
खुश रहना चाहिए
तभी हमारा जीवन
सार्थक होगा
प्रीति कुमारी
कन्या मध्य विद्यालय मऊ विद्यापति नगर
समस्तीपुर