जीवन प्राण है मिट्टी
चाह यही है इस मातृ मिट्टी को सदैव चूमता जाऊं !
चाह यही है इस मातृ मिट्टी को सदैव सींचता जाऊं !!
चाह यही है इस मिट्टी को माथे का तिलक लगाऊं !
चाह यही है इसी मातृ मिट्टी में एक दिन मिल जाऊं !!
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जन्म लिया इस मिट्टी में, कर्म किया इस मिट्टी में !
एक न एक दिन, मिल ही जाना है इस मिट्टी में !!
मिट्टी देती उर्वरा और करती ये जग सुंदर वसुंधरा !
देती खेतों की हरियाली और प्रकृति को शुभ धरा !!
देती पेड़-पौधे, फल-फूल, वाटिका और वन-जंगल !
जीव धरा के साथ करती रहती हमेशा ये सु-मंगल !!
मिट्टी की इस गहराई को समझना हर का है यह धर्म !
जीवन-चक्र के साथ बतला देता है यह जीवन कर्म !!
मिट्टी से ही मिलती प्रतिमा और वस्तुओं को स्वरुप !
कलाकार-कुंभकार देते मिट्टी से ही दिव्य प्रति रुप !!
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गर मिट्टी न होती तो इस धरा का जन्म ही न होता !
इस जगत का हर जीव अपना जीवन जी ही न पाता !!
मिट्टी के हर प्रकारों में भी छिपा है अद्भुत खजाना !
इनसे जीवन लाभ ही है हर जीवन सांस को सजाना !!
जब आती है मातृभूमि की बात तो शीश नवाते हैं !
देश की खातिर हम इस मिट्टी की शपथ दिलाते हैं !!
मिट्टी ही जीव-धरा की आन-बान-जान और शान है !
मिट्टी पर ही करोड़ों जीव जंतुओं की टिकी जान हैं !!
गर हो जाए इस जीव धरा से मिट्टी गायब और खतम !
तब दुनिया ही खत्म हो जाएगी और न जी पाएंगे हम!!
चाह यही है इस मातृ मिट्टी को सदैव चूमता जाऊं !
चाह यही है इस मातृ मिट्टी को सदैव सींचता जाऊं!!
चाह यही है इस मिट्टी को माथे का तिलक लगाऊं !
चाह यही है इसी मातृ मिट्टी में एक दिन मिल जाऊं !!
सुरेश कुमार गौरव
पटना (बिहार)
मेरी स्वरचित मौलिक कविता
@सर्वाधिकार सुरक्षित