ज्योतिर्मय चिंतन-दिलीप कुमार गुप्त

ज्योतिर्मय चिंतन 

साँसों संग युद्धरत जीवन चहुं ओर
कराहती दुनिया गमगीन शोर
नियति संग संघर्षरत जिन्दगी
हौसले के बल मिलती संजीवनी।

छायी चतुर्दिक विपदा भारी
परस्पर सहयोग की है तैयारी
अग्रणी आज मनुज के हाथ
प्रतिकूलन में सब साथ-साथ।

प्रत्यक्ष आज विश्व परिवार
राष्ट्र सीमा का गिरा दीवार
मानवता की सुधी शुभ पहल
महामारी पर भारी करूणा प्रबल।

मनुजता पर न आये कंटक
पर पीड़ा आर्य हरा निष्कंटक
प्रतिफल उज्जवल दिख रहा
जो बोया वही काट रहा।

मंदिर मस्जिद गुरु के द्वारे
रोटी अनुपान दे रहे द्वारे-द्वारे
औषधि प्राणवायु उपकरण
पर राष्ट्र खोले निज अंतःकरण।

प्रदाय ग्राह्य भाव संयोजना
व्यष्टि समष्टि की जागृत संवेदना
सुख-दुख समादर सिंधु तरंगित
महिमामंडित निज निज संस्कृति सुगंधित।

बुद्धों की वैश्विक कल्पना
साकार होती स्वर्णिम संकल्पना
वसुधैव कुटुम्बकम का वैदिक दर्शन
ऋषियों का सत्य ज्योतिर्मय चिंतन।

दिलीप कुमार गुप्त
मध्य विद्यालय कुआड़ी
अररिया

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