कहर कोरोना का
मानव जिसे आजमाता रहा अब तक,
शायद सृष्टि ने आज मानव को आजमाया है,
बेकल, बेबस, कैद अपने ही घरों में इंसान हैं,
आज विज्ञान की गति-प्रगति,
रहा सब धरा का धरा।
अति सूक्ष्म है यह विषधर,
अस्त्र-शस्त्र के बिना निरंतर,
युद्ध-ए-कोरोना किया यह जारी,
फैला रहा महा संक्रमण का खतरा,
चारों ओर फैला सन्नाटा,
बेबस लाचार है दुनिया सारी।
खौफनाक मंजर है यह,
मची हर ओर तबाही,
अब कहां गए ईश्वर बहूव्यापी,
एक वायरस ने किया सबकी तबाही।
अवरोध बन टहल रहे हर सांसो में,
लगी जंजीर पांव में आवाजाही के,
हम न छोड़ेंगे सभी घोसला अपना,
बनाए रखेंगे सदा हौसला अपना।
हर कोई संयम थोड़ा रख लें,
कभी कम खाकर, कभी गम खाकर,
स्वाद इस भूख में भी है,
संयम से जरा इसे सभी चख लें।
कोरोना की है यह दूसरी पारी,
मिलकर सभी संगी साथी हैं,
यह बात जान लें और मान लें,
कि प्रकृति है, स्वनिर्देशित और स्वचालित,
है यह पालक और नियंत्रक भी।
बीनू मिश्रा
भागलपुर