कलम के सिपाही को शत-शत नमन
तस्वीरें नहीं बदलीं
ओ संवेदना के शिखर पुरुष !
कलम के सच्चे सिपाही !
ओ कथा सम्राट!
तुमने समाज की जिन सड़ी-गली
रूढ़ियों से आती सड़ांध को
अंतिम पंक्ति में उपेक्षित पड़े
जनसामान्य की पीड़ा को
स्त्री जीवन की त्रासदी को
देख, समझ और महसूस कर
तुम बने थे नवाब राय से प्रेमचंद
दबे-कुचलों, पीड़ितों, शोषितों को
बनाकर अपना नायक
अपनी कथा-कहानियों की
खींच गए थे तुम जो तस्वीर।
आज तुम्हारे जाने के
दशकों बाद भी नहीं बदल पाई है
नहीं बदल पाई है समाज की वो तस्वीर
पूस की रात में अब भी
कितने ही हल्कू होते हैं हलकान
रत्ती भर भी कम नहीं हुई
होरी की पीड़ा
उसके मन की टीस
हामिद अभी भी अभावों में जी रहा है
बालमन में लहलहा रहा है सयानापन
भूखी-प्यासी बूढ़ी काकी
अब भी तड़पती है घर के
किसी कोने में या बरामदे में पड़ी-पड़ी
कुछ भी तो नहीं बदल पाए हम
कुछ भी नहीं
हम तुम्हें याद तो करते हैं
नमन वंदन पूजन करते हैं
श्रद्धा सुमन भी अर्पित करते हैं
लेकिन कहीं न कहीं
अंतर्मन शर्मिंदा भी है।
रानी कुमारी
पूर्णियाँ बिहार