किसान
खेती, बेटी एक समान होती है कृषक की जान,
चर,अचर जीवों का पालक अन्नदाता है किसान।
धूप-छांव हो या कि वर्षा कभी नहीं करता विश्राम,
दिन-रात वह करता काम, आराम है उसका हराम।
नयन नीर से पीर भुलाकर दिल में सदा रखता भगवान।।
पक्षियों के कलरव से पहले छोड़ बिस्तर उठ जाता है,
डोर पकड़कर प्रेम से अपने मवेशी को उठाता है।
पूरब में फिर लाली देखकर अन्य कार्य का होता भान।।
संग में ले बैलों की जोड़ी उसे खेत पहुंचना होता है,
पेट काटकर नई फसल का बीज भी बोना होता है।
शाम ढलने से पहले ही अपने घर को करता प्रस्थान।।
सिर पर पगड़ी, हाथ में रस्सी पशुओं का चारा लाता है,
दिनभर की पीड़ा भुलाकर बच्चों पर प्यार लुटाता है।
किसी की निंदा कभी न करता ईश्वर का करता गुणगान।।
फटा हो गमछा, फटी हो धोती थाल में होती सूखी रोटी,
चैन की नींद में खो जाता है मान के अपनी किस्मत खोटी।
सपना नया दिखाता दिल में दबे उसके हुए अरमान।।
खून-पसीना रोज बहाकर अच्छी फसल की आस लगाता है,
बेमौसम की मार झेलता यदि भाग्य दगा दे जाता है।
पूंजी भी हाथ नहीं लगती है, हाय उदास रहता खलियान।।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’,
पटना, बिहार