किताब
बच्चों! मैं हूँ किताब
जो सभी के जीवन को बदल दूँ,
सबके जीवन को रंगीन सपनों से भर दूँ।
केवल सबको मुझे पढ़ना है और गढ़ना है,
तब मुझको समझना और ज्ञान पाना है।
ततपश्चात ही सबको आगे बढ़ना है,
सुन्दर अच्छे विचारों से अपने मन को संवारना है।
बच्चों ! मैं हूँ किताब—
हर प्रकार की जानकारियों से भरी पड़ी हूँ,
जीवन के हर रास्ते, हर कदम पर खड़ी हूँ।
केवल मेरी अहमियत सबको देनी होगी,
रामायण, गीता, वेद ग्रन्थ, मैं सब में हूँ दिख रही,
हर रूप में हर ढंग़ में मुझे पहचानना होगा,
मै हूँ किताब मुझे सबको पढ़ना होगा।
बच्चो! मैं हूँ किताब—
अगर न होती मैं, कैसे होता गुरु से ज्ञान,
ऐसे में बच्चों तुम्हारी कौन बढ़ाता शान।
सबका सुंदर जीवन बनाता कौन,
रहो न बैठे बिल्कुल ही मौन।
मेरे अंदर ज्ञान भरी बातों को समझना होगा,
तुलसी, कबीर, सूरदास जैसे महिर्षि व्यास को जानना होगा।
बच्चो! मैं हूँ किताब—
तभी तो कहूँ मैं कि सबको मुझे पढ़ना होगा,
जीवन में सफलता के लिए किताब प्रेमी बनना होगा,
मुझे साथ रखकर जीवन संवारना होगा,
मैं देती जो ज्ञान उसे अपनाना होगा,
तभी जगत का सुन्दर कोना-कोना होगा,
जग में ज्ञान का दीप जलाना होगा,
जीवन में जगमग मोती को भरना होगा।
बच्चों ! मैं हूँ किताब—
रीना कुमारी
पूर्णियाँ बिहार