क्यों बैठा मन मार राही
सफर अभी शेष है
समर अभी शेष है
चंद ठोकरों से घबराकर
क्यों बैठा मन मार राही
क्यों बैठा मन मार ?
चूमना है शिखर तुम्हें ही
छूना है आकाश भी
ग़म के अंधेरे से सहम कर
क्यों बैठा मन मार राही
क्यों बैठा मन मार ?
वक्त बारंबार करके प्रहार
यूँ ही लेता रहेगा इम्तिहान
तू धैर्य का दामन छोड़कर
क्यों बैठा मन मार राही
क्यों बैठा मन मार ?
जीवन के लम्बे सफर का
सुख-दुःख तो संगी-साथी है
फिर दुःख से यूँ मुँह मोड़कर
क्यों बैठा मन मार राही
क्यों बैठा मन मार ?
दुःख-दर्द हँसकर सह जाओगे
दृढनिश्चयी और फौलादी बन आओगे
मुसीबतें भागेंगी तुझसे जी चुराकर
न बैठ मन मार राही
न बैठ मन मार।
रानी कुमारी
पूर्णियाँ, बिहार
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