कैद हो गई जिन्दगी-प्रीति कुमारी

कैद हो गई जिन्दगी 

कैद हो गई जिन्दगी,
यूँ ही समय व्यतीत हो रहा,
ऐसा लगता है मानो,
दुर्गम है यह रास्ता।
सभी लोग हैं डरे हुए,
सहमें और सिमटे हुए,
लोग-बाग नहीं रख रहे,
एक-दूजे से वास्ता।
लगा नहीं था दुनियाँ में,
ऐसा वक़्त भी आएगा,
लोगों का जीवन यूँ ही,
घरों में सिमट जायेगा।
पता नहीं प्रकृति का,
है यह कौन सा नया रूप,
जन-जीवन है अस्त-व्यस्त
और बदल रहा
सबका स्वरुप।
शायद प्रकृति आज हमें,
यह बात बताना चाहती है।
इसके बिना हम सब हैं अधूरे,
यह विश्वास दिलाना चाहती है।
शायद यह धरा भी ऊब गई,
हम मानवों की मनमानी से
माँ रूपी धरती सहम गई
नित होने वाली हानी से।
हमनें अपनी लोलुपता में,
दिन-रात इसे क्षतिग्रस्त किया।
इसके अंगों को काट-काट,
अपने मन को संतुष्ट किया।
कल हरे-भरे जंगल काटे,
आज ऑक्सीजन को
तरस रहे।
हैं कल-कारखाने खड़े किये,
परिणाम प्रदूषण भुगत रहे।
नगरों के चकाचौंध में हम,
गाँव समाज भी भूल गए
एकल अब परिवार हुआ,
हम अपने में मशगूल हुए।
तो आज ये सब देख-देख
क्यों मन चित्कार है कर रहा,
कोई और नहीं आया करने
यह मानव का ही किया धरा।
अब बन्द करो विनाश का खेल,
न काटो पहाड़,न काटो पेड़।
आओ अब हमसब मिल जुलकर,
अब नित नए बाग लगाएँगे
धरती पर हरियाली लाकर
प्रकृति को फिर से सँवारेंगे।
पेड़ कभी न काटेंगे,
धरा को स्वर्ग बनाएँगे।
जंगल फिर से लहलहाएगा,
वन्य-जीव विचरण कर पायेंगे।
फिर से कलियाँ मुस्काएंगी,
फिर झरने गीत सुनायेंगे
और हरी-भरी यह वसुंधरा
फिर मन्द-मन्द मुस्काएगी।

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प्रीति कुमारी
कन्या मध्य विद्यालय मऊ विद्यापति नगर समस्तीपुर 💐💐🌳

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