माँ मुझको भी पढ़ने दो ना-विजय सिंह नीलकण्ठ

माँ मुझको भी पढ़ने दो ना

माँ मुझको भी पढ़ने दो ना 
बहुत हो चुका काम खेत में 
नौ बजता दिख रहा घड़ी में 
स्कूल समय से जाने दो ना 
माँ मुझको भी पढ़ने दो ना।
सुबह-सुबह हीं खेत में आकर 
रखा हूँ मूली उखाड़कर 
गाजर का भी ढेर लगाया 
अब मुझको घर जाने दो ना 
माँ मुझको अब पढ़ने दो ना।
जब किसी दिन खेत न जाता 
गाय भैंसों को हूँ नहलाता 
चारा देता दूध निकालता 
अब तो स्कूल जाने दो ना 
माँ मुझको भी पढ़ने दो ना। 
भैया जी अनपढ़ हैं देखो 
दीदी भी न पढ़ती देखो 
लेकिन मुझको तो पढ़-लिखकर 
प्राप्त ज्ञान को करने दो ना 
माँ मुझको भी पढ़ने दो ना।
पढ़ने से ही ज्ञान बढ़ेगा 
मान के सह सम्मान बढ़ेगा 
दादा दादी जी के साथ 
पापा का भी नाम बढ़ेगा 
गरीबी भी मिट जाएगी 
सच कहता हूँ बात सुनो ना 
माँ मुझको भी पढ़ने दो ना।
विजय सिंह नीलकण्ठ 
सदस्य टीओबी टीम 
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