माँ-प्रभात रमण

माँ

आँख खुली तो तुमको पाया
रेंग रेंगकर खड़ा हुआ ।
तेरी ममता की छाया में
न जाने कब बड़ा हुआ ।
ईश्वर का दूसरा रूप हो तुम
नव प्रभात की धूप हो तुम ।
कभी पूरा न हो ,
वो एहसान हो तुम ।
पता नही क्यों,
मेरे लिए परेशान हो तुम ?
अपना ख्याल रख सकता हूँ
इस बात से तुम अंजान हो ।
मैं दुनियाँ से लड़ सकता हूँ
पर तुम भोली, नादान हो ।
अपनी ममता की छाँव में
मुझे छुपाया करती हो ।
स्वयं निशा भर जगती हो
पर मुझे सुलाया करती हो ।
आँख का तेरे तारा हूँ
तुम्हें मुझसे बहुत ही प्यार है ।
संध्या काल सदा तुम्हें 
मेरे आने का इंतजार है ।
कितना भी बुरा मैं हो जाऊँ
पर सीधा सादा सच्चा हूँ ।
कितना भी बड़ा मैं हो जाऊँ
पर आज भी तेरा बच्चा हूँ ।
मैं तो तेरा बालक हूँ
अपनी आँचल की छाँव दो ।
बेबस और लाचार पुत्र को
अपनी ममता का गाँव दो ।
हर बच्चों की जननी माँ तुम
हर घर की तुम मूरत हो ।
किसी और साथ का लोभ नहीं
गर साथ तुम्हारी सूरत हो ।
मुझ मूरख को क्षमा करो
माँ प्यार तुम्हे गर दे न सकूँ ।
वह पल आखरी हो मेरा
आशीष तेरी जब ले न सकूँ ।
शब्दों में कैसे मैं तेरा वर्णन करूँ ।
बस इतनी शक्ति दो माँ,
सदा तुम्हें ही नमन करूँ ।

प्रभात रमण
मध्य विद्यालय किरकिचिया
फारबिसगंज अररिया

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