मां की ममता
बसंत जैसी ऋतु हो तुम।
पूर्णिमा की हो चांद।।
ममता की आंचल पसारे।
करुणा सागर समान।।
तेरी ह्रदय से पृथ्वी छोटी।
ममता तेरी सबने देखी।।
अपने हाथ से पानी भी पिलाए।
अमृत समान आत्मा सुख पावे।।
तेरी बदन को थकते न देखा।
न कभी चैन से सोता देखा।।
किचन पूजा घर में पाया।
बेडरूम में देख न पाया।।
लॉक डॉन में सब कुछ लॉक था।
तेरी काम का ओपन मूड था।।
सबका ख्याल कैसे रख पाती।
तू भी तो एक इंसान कहलाती।।
शिवेंद्र शिवम
0 Likes