मैं तुम्हें नमन करता हूंं-मनोज कुमार दुबे

Poem

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मैं तुम्हें नमन करता हूं

 

हे जगत की गुरु मात मैं तुम्हें नमन करता हूं। शीश झुकाता हूं वसुन्धरा मैं तुम्हे नमन करता हूं।।

जहाँ शांति का हुवा घोष वह भारत की पुण्य धरा है।
सत्य न्याय परोपकार मानवता कि जननी ये धरा है।।
राम कृष्ण की धरती यह जिन्होंने लीला दिखलाया।
पैदा हुए नर रूप में भगवन जो कर्म प्रधान बतलाया।।
झुक कर तेरी माटी को मैं तुम्हे नमन करता हूं।
शीश झुकाता हूं वसुन्धरा मैं तुम्हे नमन करता हूं।।
वसुधैव कुटुंब्कम की नीति, बोली में प्रेम का स्वर है।
हर घर के मामा चंदा, प्रातः काल के देव भास्कर है।
जन्म भूमि जहाँ स्वर्ग से सुंदर है प्राण न्योछावर तुझ पर।
ढोती है तू भार सृष्टि का माता वंदन यह कर्ज है मुझ पर।।
अखिल विश्व की जन्म भूमि मैं तुम्हे नमन करता हूं।
शीश झुकाता हूं वसुन्धरा मैं तुम्हे नमन करता हूं।।

 

मनोज कुमार दुबे

राजकीय उत्क्रमित उच्च माध्यमिक विद्यालय भादा खुर्द लकड़ी नबीगंज सिवान
©manojdubey

 

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