मानव धर्म
कर सको तो कर दो बढ़कर
है अगर तुझमें वो “दम” ,
पोछ दो “आंसू” किसी के
हो ना उसकी आँखे “नम”।
थाम लो “अपनों” की बाहें
बांट लो तुम उसका गम
बन जाओ उसका सहारा
जाये न उसकी सांसे “थम”।
मुश्किल से तुमको है मिला
जीवों में “तन” इंसान का,
कर्म भी ऐसा करे की
प्यारे बने दुनियाँ की “हम”।
भर दो प्रकाश जीवन में उसके
जो पड़ा “निश्तेज” हो,
सूर्य सा तुम तेज लेकर
रौशनी से हर लो “तम”।
मित्र तेरा “धैर्य” “धीरज”
उसको तुम पहचान लो
चलो मिलकर संग सबके
है यही मानव का “धर्म”।
स्वरचित
डॉ अनुपमा श्रीवास्तव 🙏🙏
मुजफ्फरपुर, बिहार
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