मातृभाषा हिंदी
हिंदी हमारी आन बान और शान है ।
हिंदी ही हमारी पहचान है ।
हिंदी से ही हिंदुस्तान है ।
हिंदी ही बनाती हमको विश्व में महान है ।
हिंदी अनेकता में एकता लाती है ।
सिर्फ हिंदी ही हमको भाती है ।
हिंदी हमारी मातृभाषा है,
हिंदी ही हमारी परिभाषा है ।
वर्मा, पन्त, गुप्त जी का काव्य अमर,
रेणु और मुंशी जी की कथा प्रखर ,
याद है हमें सुभद्रा, बच्चन और दिनकर ।
किन्तु अब,
हिंदी को हम छोड़ रहे,
अंग्रेजी से नाता जोड़ रहे ।
अंग्रेजी पढ़ते पढ़ाते हैं ,
अंग्रेजी में ही सब काम किये जाते हैं ।
अपनी धरोहर को त्याग कर ,
गैरों को अमर बनाते हैं ।
न मिलती है अब रचना नागर की,
न दिखती है कविता दिनकर की ।
तुलसी, सूर, कबीर सब खो गए हैं
माखन, केदार, जयशंकर सब सो गए हैं ।
नहीं रहे अब बाबा नागार्जुन,
नहीं दिखते अब किरातार्जुन ।
अपना संस्कार ही अब हम नया बनाते हैं ।
सब रिश्तों के नाम बदल दिए हैं,
अब पिताजी और माता जी नहीं कहाते हैं ।
हिंदी को भी अंग्रेजी में लिखते लिखवाते हैं,
बच्चों को अब गद्य और पद्य नहीं
स्टोरी पोएम पढाते हैं ।
चिट्ठी का समय तो चला गया
अब मैसेज भेजे जाते हैं ।
किन्तु जरा सोचो,
क्या होगा ?
जब हिन्द में हिंदी न होगी ?
न कवि होंगे न कविता होगी ?
न लोरी और न ममता होगी ?
न पथ दिखलाने को गीता होगी ?
अपना संस्कार भी अंग्रेजी में बयाँ होगा
न जाने तब क्या होगा ?
फिर क्या होगा ?
प्रभात रमण
मध्य विद्यालय किरकिचिया
प्रखण्ड – फारबिसगंज
जिला – अररिया