मेरा बिहार-विजय सिंह नीलकण्ठ

मेरा बिहार

मेरा बिहार प्यारा बिहार
न दूजा इस जैसा संसार
यहाँ मिले भरपूर प्यार
एक बार नहीं हजारों बार। 
अड़तीस जिले हैं इसकी सान
जिससे है इसकी पहचान
हम सबका है मान सम्मान
स्वच्छता हो इसकी पहचान। 
मिट्टी इसकी है उपजाऊ
जिसपर उपजे अन्न सा सोना
सबको भर पेट भोजन मिलता
न पड़ता है भूखे रोना। 
गंगा कोसी अनेकों नदियाँ
जल देकर खेतों को सींचती
प्यासों की यह प्यास बुझाकर
कभी नहीं ऑंख मींचती। 
धन्य हमारी बिहार की धरती
जन्मे यहाँ अनेक विद्वान
आर्यभट्ट राजेन्द्र प्रसाद सह
चन्द्रगुप्त कौटिल्य महान।  
भरे पड़े हैं यहाँ की धरती 
पर कई ऐतिहासिक स्थल
हर मौसम में सदा हीं मिलता
सुंदर सुंदर व ताजे फल। 
हर प्रकार के व्रत त्योहार भी
यहाँ मनाए जाते हैं
घर घर पकता स्वादिष्ट व्यंजन
सब मिल-जुलकर खाते हैं। 
हम की भाव हिय के अंदर
हर बिहारी की पहचान है
जाति धर्म का भेद न रखते
बिहार की हम संतान हैं। 
लिखते लिखते थक जाऊँगा
बिहार की गौरव गाथा
फिर भी कम न गौरव होगी
कण-कण जो इसमें पाता। 
अंत न करने का मन होता
जी करता लिखते जाऊँ
लेकिन अंत जरूरी भी है
जिससे नया कुछ लिख पाऊँ। 
विजय सिंह नीलकण्ठ
लीडर टीओबीश्र राइटर्स टीम
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