मेरी पुस्तकें मेरे मित्र
मेरी पुस्तकें मेरे मित्र
न ये रूठती, न ये साथ छोड़ती
डुबोती रहती ये ज्ञान के सागर में
पिलाती रहती अमृत की धार
करती रहती बातें गर तुम सुनना चाहो
जूझना सिखाती मुश्किलों मुसीबतों से
पार करना सिखाती संसार के भव सागर से
ये चाँद तक पहुँचा देती है
ये बाल की खाल तक निकाल देती
ये पहुँचाती, अतीत के बीते लम्हों में
ये वर्तमान से लड़ना भी सिखाती
कभी ये प्रायोगिक हो जाती
कभी ये चित्रात्मक हो जाती
तभी ये संगीतात्मक हो जाती
कभी दिलों के तारों को छेड़ जाती
कभी दुखते दिलों पर मरहम लगाती
कभी इनमें संसार का विध्वंस समाहित
कभी इनमें संसार का नवनिर्माण समाहित
कभी इनमें परियों की कहानियाँ
कभी इनमें महापुरुषों के किस्से
ये इंसान को इंसानियत सिखाती
जीवन जीने का सलीका सिखाती
मेरी पुस्तकें, मेरे मित्र
न ये रूठती, न ये साथ छोड़ती
मेरी पुस्तकें ही तो मेरी सच्ची मित्र
अपराजिता कुमारी
रा.म.वि.जिगना जग्रनाथ
प्रखंड-हथूआ
जिला- गोपालगंज