मिट्टी की महक – डॉ.अनुपमा श्रीवास्तवा

Dr. Anupama

                                Dr. Anupama

मिट्टी की महक

“महक” आती थी मिट्टी की
गाँव के “खलिहानों” से,
मिलती कहाँ है वैसी खुशबू
इन ईट से बने मकानों से।

खुशियाँ देती थी पेड़ों पर
रस्सी से बांधे झूले से,
सोंधी-सोंधी महक आती थी
“मिट्टी” वाली चूल्हे से।

खाने का आता था “न्योता”
रोज पड़ोस के घर-घर से,
मन की थकन मिट जाती थी
चाय की सोंधी कुल्हड़ से।

शुद्धिकरण मिट्टी से होता
पूजाघर “त्योहारों” में,
बस जाती मिट्टी की खुशबू
हर -घर के दीवारों में।

आती कहाँ है वह अब खुशबू
मिट्टी के दिये और तेल की,
बसी है महक यादों में अब तक
“मिट्टी” के संग खेल की।

स्वरचित एवं मौलिक
डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा 🙏🙏
मुजफ्फरपुर बिहार

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