मुझको पता नहीं
माँ! तो माँ होती है
उसमें भरी ममता की छाँव होती है
मोह में पड़ी रहती है आजीवन
हो शहर या गाँव में अपनापन
कब चुरा लेती है दर्द मेरी
चलता मुझको पता नहीं।
माँ! तो माँ होती है
जलता सूरज ढलती शाम होती है
दौर-धूप की दुनिया में न थकता तन
पीकर आँसूओं को खिलता है उसका मन
सुना लोरी खुद सो जाती
चलता मुझको पता नहीं।
माँ! तो माँ होती है
बहती मझधार में नाव होती है
मन में लिए बोझ पहाड़ों का
दिखा एहसास एक मात्र सहारों का
रह भूखे मुझे खिला जाती है
चलता मुझको पता नहीं।
माँ! तो माँ होती है
नि:सहाय नन्हों की जाँ होती है
दुःखों का टीला बाँध धैर्य का
फिरता आँचल लिए शौर्य का
कब छूटता जीवन रह जाता कर्ज
चलता मुझको पता नहीं।
माँ! तो माँ होती है
वह लड़खड़ाते अबोध का पाँव होती है
गर तनिक मात्र भी सिसके आँगन
चले त्याग वह बिन्दिया, चूड़ी, कंगन
कब बन जाती दुर्गा चंडी
चलता मुझको पता नहीं
माँ! तो माँ ही होती है।
भोला प्रसाद शर्मा
डगरूआ, पूर्णिया (बिहार)