न हो विकल
गर कोई संकोच हो
रुकना मुनाशिब पल दो पल
कुछ समय पश्चात ही
बाधाएँ स्वयं जाती निकल
न हो विकल न हो विकल।
जब भी कोई पाषाण पथ पर
दिख जाए न हो विकल
मारकर ठोकर उसे
बढ़ जाना स्व ठिकाने तक।
पथ की बाधाओं से लड़
हर-दम बढ़ाओ स्वकदम
हो जाओगे तुम भी सफल
न हो विकल न हो विकल।
जब कोई अनजान साया
लगे डराने न हो विह्वल
सामना कर उस हकीकत
को मिटाकर हो सफल।
मिलेगी सब मंजिलें
गर चाहोगे पाना तो कल
संघर्ष ही संघर्ष से
बन जाते हैं सबके महल,
न हो विकल न हो विकल।
विजय सिंह नीलकण्ठ
सदस्य टीओबी टीम
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