नन्हे बच्चे
हम बच्चे कोमल तन के,
खेलें खेल चंचल बन के,
करते काम निज मन की,
फिकर नहीं अपने तन की।
खेल हमें लगती है प्यारी,
माँ की ममता सबसे न्यारी।
खेल में भाती रेलगाड़ी,
छुक-छुक आगे बढ़ती जाती।
हम बच्चे कोमल तन के,
खेलें खेल चंचल बन के।
मार डाँट से डरता हूँ,
पिंजर बंद न रहता हूँ।
नित्य समय पर सोता हूँ,
खूब सवेरे उठ जाता हूँ।
हम बच्चे कोमल तन के,
खेलें खेल चंचल बन के।
हर जगह खुश रहता हूँ,
स्नेह की बातें करता हूँ।
इर्ष्या घृणा से दूर हीं रहता,
मस्ती में अपनी झूमता रहता।
हम बच्चे कोमल तन के,
खेलें खेल चंचल बन के।
अनुज कुमार वर्मा
मध्य विद्यालय बेलवा
कटिहार, बिहार
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