नन्हीं गौरैया
भूरे रंग की कुछ गौरैया
हमारे घर में रहती है,
सुबह-सवेरे उठकर वो
चीं-चीं चूँ-चूँ करती है।
उसकी मधुर आवाज सुन
बिस्तर छोड़ उठ जाता हूँ,
फुदक रही नन्हीं गौरैया को
अपने घर-आँगन में पाता हूँ।
ज़मीं पर बिखरे दाने को वो
चुग-चुग कर खाती है,
जब भी कोई निकट पहुंचे
पंख फैला उड़ जाती है।
तिनका-तिनका जोड़कर वो
अपना आशियाना बनाती,
पीली चोंच में दाना लाकर
अपने चूजों को खिलाती।
नन्हीं गौरैया का फुदकना
सबके मन को भाता है,
हरदम चह-चह चहचहाना
मुझको खूब लुभाता है।
गौरैया इस घर को छोड़
तुम दूर कभी मत जाना,
नभ में करके सैर सपाटा
शाम ढले तो घर आ जाना।
घट रही जंगल कट रहे पेड़
चिड़िया-चुनमुन है उदास,
मोबाइल टावर के रेडियेशन से
अटक रही गौरैया की सांस।
गौरैया के संरक्षण को लेकर
सब मिल आगे आना है,
कह रहे कवि “नरेश निराला”
इस सुन्दर प्राणी को बचाना है।
नरेश कुमार “निराला”
सुपौल, बिहार