नारी
नारी लक्ष्मी रूप है, जाने सकल जहान।
अन्तर्मन के भाव में, बसते हैं भगवान।।
नारी जीवन सार है, बिन नारी निस्सार।
नर नारी के चक्र से, जगमग है संसार।।
नारी अत्याचार को, मिलजुल करें निदान।
नर के मनहर भाव से, हो नारी सम्मान।।
मत कहें बस मात है, हृदय जगाएँ मान।
नर नारी विश्वास से, जीवन रथ गतिमान।।
नारी बिंदी भाल की, चंदन है अभिषेक।
मान सकल संसार में, नारी रूप अनेक।।
नारी से ही सृष्टि है, जाने सकल जहान।
पुष्पित प्रमुदित हैं सभी, नारी के उद्यान।।
ममता, करुणा, त्याग की, मूरत उसको मान।
नारी गुण की खान है, सदा करें सम्मान।
नारी सृजक स्वरूप है, करें नहीं अपमान।
नारी बिन आलय सदा, बन जाता शमशान।
सावित्री गुण ग्रहण कर, लाएँ नवल विचार।
सीता सी शालीन बन, सद्गुण करें प्रचार।।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ शिक्षक
मध्य विद्यालय धवलपुरा
सुलतानगंज भागलपुर बिहार