नौनिहाल
बचपन जीवन का आधार
परमपिता का अनुपम उपहार
सतरंगी आभा नभ का
निर्मल मन हो जैसे सबका ।
पल में रोना पल में विहँसना
कटुता बीच मिश्री का घुलना
भूलों को जैसे क्षमा का मिलना
शूलों बीच गुलाब का खिलना ।
रुखा सुखा हो या मेवा मिष्ठान्न
न कोई गिला शिकवा शिकायत
पक्के धुन के सच्चे बच्चे
पल पल मस्ती लूटते लुटाते ।
दुराव नहीं कोई छिपाव नहीं
जगत से भेदभाव नहीं
जग में रह जग से अलेपा
बालमन जैसे प्रभु को देखा ।
पोषण खेल अच्छी पढ़ाई
हर बालक का हक है भाई
इनके हक को मत मारो
इनका स्वर्णिम जीवन सँवारो ।
गिली माटी ये पावन वसुधा के
बन कुंभकार इन्हें गढना होगा
अनगढ को सुगढ बनाकर
पाठ मानवता का पढ़ाना होगा ।
भुजबल के पौरुष नन्हे मुन्ने
उर इनका निखिल व्योम है
नयनो में सिंधु की तरलता
मन मष्तिष्क छवि धवल प्रखरता ।
ये नौनिहाल हैं राष्ट्र के कल
इनसे सुरभित शतदल कमल
ध्वजवाहक ये अपनी संस्कृति के
आध्यात्मिक तेज मानव प्रगति के ।
दिलीप कुमार गुप्ता
प्रधानाध्यापक म. वि. कुआड़ी अररिया