पढ़ना है
हमको भी अब पढ़ना है,
जीवन में आगे बढ़ना है।
बाधाओं के मेले हैं,
नित्य नये झमेले हैं।
आलस्य का जंजीर काटकर,
हिम शिखर पर चढ़ना है।
जीवन में आगे बढ़ना है।।
आबादी का बोझ घटाना है,
अनपढ़ का दाग़ मिटाना है।
नफ़रत पर विश्वास प्रेम का,
सभ्य समाज को मढ़ना है।
जीवन में आगे बढ़ना है।।
भटके को राह पर लाना है,
सबको गले लगाना है।
राजेन्द्र, रविन्द्र, गांधी जैसा,
एक “बूत” फिर गढ़ना है।
जीवन में आगे बढ़ना है।।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि ‘शिक्षक’
म. वि. बख्तियारपुर, पटना
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