पापा की परी
फूल सी कोमलता,
तितली सी चपलता,
शिशु सी सरलता,
है मुझमें कौतुकता,
परी हूं मैं पापा की परी हूं।
रास्ते हैं कठिन मेरे
डगर पर है शिलाएं,
सफलता की राहों में हैं जटिलताएं,
क्या लिखी है मैंने स्वयं अपनी परि कथाएं ,
प्रतिमोड़ पर बिछी है चुनौतियों की शिलाएं,
मेरे साथ चलेगी शैशवावस्था की परिकल्पनाएं,
हाँ परी हूं पापा की परी हूं ।
न तौलना मुझे अपने अस्तित्व के अंबुज में,
बेमिसाल, बेहिसाब तमन्नाओं की आराधना हूं मैं
अनुपम प्रतिमानों की अद्भुत है परीक्षा हूं मैं,
पथ पे बिछे काटों की समीक्षा हूं मैं
हाँ परी हूं पापा की परी हूं मैं।
प्रियंका दुबे
मध्य विद्यालय फरदा, जमालपुर
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