परोपकार-मनु कुमारी

Manu

परोपकार

एक थी रानी,
बड़ी है मार्मिक उसकी कहानी,
रानी के पास सबकुछ था,
धन-दौलत रूपये पैसे,
बंगला गाड़ी, सोने चांदी,
पद प्रतिष्ठा, ऐशोआराम,
सुख के थे साधन तमाम,
फिर भी उसके चेहरे पर,
रहती घनी उदासी छाई।
मानो पूर्ण चंद्र पर,
हल्की सी बदरी घिर आई।

रानी ने सोची, क्यों रहती
हूँ मैं उदास?
सब कुछ तो है मेरे पास।
फिर खुद को टटोली,
सोची समझी,
खुशियाँ नहीं है मेरे पास।

ढूंढती रही, कई जगह,
भटकती रही शहरों, बाजारों में,
मंदिरों में सिर झुका आईं,
न मिली खुशियाँ किसी तीर्थ स्थानों में,
किसी ने कहा वैद्य को दिखाओ,
अपने रोग का उपचार कराओ।

रानी पहूंची वैद्य के पास।
वैद्य जी मेरे अशांत मन में,
शांति नहीं, सुकून नहीं,
खुशियाँ नहीं,
वैद्य ने एक दाई को बुलाया,
जिसने रानी को खुशियों का राज बताया।

दाई ने कहा! सुनो प्यारी रानी।
ये है मेरी अनुभव की कहानी,
खुशियों के लिए जीव मात्र से प्यार करो।
दीन, दुखियों की सेवा करो,
बीमारों की, देखभाल करो,
पडोसियों और जरूरतमंदों की सहायता करो,
भूखे को अन्न और प्रयासों को पानी पिलाओ,
प्रकृति से प्यार करो,
तुम्हारे पास आयेंगी खुशियाँ दौड़कर,
सारी बाधाओं को तोड़कर।

सुनकर दाई की बात लगी रानी रोने।
दाई ने आँसू पोछी,
उठ गयी काम पर जाने,
रानी ने मन ही मन दाई को धन्यवाद किया।
जिसने अनमोल ज्ञान देकर,
रानी का उपकार किया।
शास्त्रों ने भी किया स्वीकार,
खुशियों का आधार है,
“परोपकार”।

स्वरचित:-
मनु कुमारी
मध्य विद्यालय सुरीगाँव
बायसी पूर्णियाँ बिहार 

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