पेड़
सारी सृष्टि सुशोभित मुझसे
युगों-युगों से राज है मेरा
न जाने कितनी कहाँनियाँ समाहित है मुझमें
आज मैं अपने बारे में कुछ बतलाता हूँ
हाँ, मैं एक पेड़ कहलाता हूँ।
छोटा नन्हा बीज बनकर
आया इस दुनिया में मैं
बोकर मिट्टी में माली ने सींच-सींचकर मुझे किया अंकुरित
फिर धीरे-धीरे एक नन्हा पौधा बनकर मैं खिल-खिलाता हूँ
हाँ मैं एक पेड़ कहलाता हूँ।
उस नन्हे पौधे में आई बहुत सारी शाखाएँ
लंबी-लंबी शाखाएँ मेरी रूप विशालकाय
पत्तियाँ, फूल और फल पाकर मैं इठलाता हूँ
हाँ मैं एक पेड़ कहलाता हूँ।
मैं हूँ एक पेड़ जिसपर बैठे चिड़ियाँ अनेक
कौआ, तोता, मैना रानी
जिनकी मैं करता निगरानी
मैं लाता हूँ हवा और पानी
जिससे जग में खुश रहते हैं प्राणी
हाँ मैं वही पेड़ कहलाता हूँ।
मुझमें बसे अनेकों गुण
लाखों औषधियों के धुन
राही को देता हूँ छाया
बैठकर मेरे आँचल तले
कितनों ने है ज्ञान पाया
खर्च नहीं है मुझमें ज्यादा
धरती से पीता हूँ पानी और बदले में प्रकृति की सुन्दरता बढ़ाता हूँ
धरती को स्वर्ग बनाता हूँ
हाँ मैं एक पेड़ कहलाता हूँ।
जीवन भर मैं साथ निभाऊँ
मरने के बाद भी मैं काम आऊँ
कभी मैं दादाजी की छड़ी बन जाऊँ
और कभी कुर्सी, टेबल, मेज बनकर
आराम मैं दिलाता हूँ
हाँ मैं एक पेड़ कहलाता हूँ।
मुझे काटने वालों सुन लो
यूँ हीं काटते जाओगे
न बचेगा हवा और पानी
और न हीं तुम बच पाओगे
करो तन-मन से सेवा मेरी
यह ज्ञान मैं सिखलाता हूँ
हाँ मैं एक पेड़ कहलाता हूँ।
रानी कुमारी
N. P. S हैवतपुर
बाराहाट, बाँका