प्रभात
हम प्रभात की दिव्य किरण बन
जग को राह दिखाएँगे।
वसुधा कलियाँ नई खिलाकर
महक सदा बिखराएँगे।।
तिमिर सदा ही दूर भगाकर
जीवन सुमन खिलाएँगे।
कदम-कदम पर खुशियाँ देकर
राही मन हरषाएँगे।।
हम प्रभात की दिव्य किरण बन
जग को राह दिखाएँगे।।
उषाकाल में नव विचार का
भाव सरस उपजाएँगे।
सदा बढ़े नित कदम हमारा
जन-जन को बतलाएँगे।।
हम प्रभात की दिव्य किरण बन
जग को राह दिखाएँगे।।
बेला मधुरिम सुबह देखकर
मनहर भाव जगाएँगे।
बन किसान अपनी धरती पर
पावन शस्य लगाएँगे।।
हम प्रभात की दिव्य किरण बन
जग को राह दिखाएँगे।।
हो विकास चहुँ ओर हमारा
रश्मि सदा फैलाएँगे।
सौम्य सुखद की धारा को नित
मोती सा चमकाएँगे।।
हम प्रभात की दिव्य किरण बन
जग को राह दिखाएँगे।।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
भागलपुर बिहार