प्रकृति का आंचल
प्रकृति में अपना आंचल कर दिया हम पर बलिहार,
पर हमने बन स्वार्थी कर दिया आंचल को तार-तार,
आओ हम सब पेड़ बचाएँ,
नित नए पेड़ लगाएं,
मिल-जुलकर हम सब पर्यावरण बचाएं।
मिले संसाधन हमें प्रकृति से जीवन यापन के अपार,
पर लोभी मानव ने उनका कर दिया संहार,
नित ग्लोबल वार्मिंग कर रही हमें परेशान,
हे मानव अब तो संभल जा मत बन नादान,
अब न धरा का चीर हरण करवाएं ,
आओ हम सब पेड़ बचाएं।
नित बढ़ रहा नए कारखानों का शोर,
फैल रहा नदी में गंदा पानी,
करें जो जीवन को आनाकानी,
आओ मिलकर संकल्प उठाएं,
धरती मां को प्रदूषण मुक्त कराएं।
नदियां बहती अविरल कल कल,
जीवन पनपे प्रकृति के संग,
हर सांस कर रही हमें शिकायत,
पिघल रहा है ग्लेशियर,
ताप धरा का बढ़ रहा है।
चलो धरा को ठंडक पहुंचाएं
आओ हमसब पेड़ लगाएं
प्रकृति के आंचल को बचाएं।
बीनू मिश्रा
भागलपुर