प्रकृति की छवि-डाॅ. अनुपमा श्रीवास्तव

Dr. Anupama

प्रकृति की छवि

बसाके अपनी आँखो में
तेरी अदभुत छटा निहार रही
मन उपवन बन पुकार उठी
प्रकृति की देख शृंगार सखी।

तेरे हृदय के गहरे सागर में
हंसो का जोड़ा झूम रहा,
लगता है जैसे “धरा” तुम्हें
आकाश मगन हो चूम रहा।

दिल करता है एक पल भी
तुझसे हटे न नजर कभी,
बैठा लूँ “छवि” आखों में
तेरी अदभुत है शृंगार सभी।

है नमन तुम्हें मेरा ओ “सृष्टि”
तुझसे ही तो जग में प्रेम खिले,
मन बाग बाग हो जाता है
“प्रकृति” से तू जब गले मिले।

हर पल मनभावन होता है
हर दिन सावन बन जाता है,
चहुँ ओर छटा तेरी है निखरी
मुझे इन्द्रधनुष दिख जाता है।

स्वरचित
डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा
मुजफ्फरपुर बिहार

0 Likes
Spread the love

Leave a Reply