प्रेम से जीना सीखें
सदा प्रेम से जीना सीखें
प्रेम ही जीवन सार है।
अगर प्रेम से नहीं रहोगे
जीवन तभी बेकार है।।
नहीं कभी बिकता है जानो
यही तो उर का भाव है।
पशु पंछी भी प्रेम सिखाते
होते भी उनके चाव है।।
प्यार लुटाती माँ बच्चों पर
सदा ही अमिट दुलार है।
प्रेम ही सच्चा मानो माँ का
ममता इनकी अपार है।।
प्रेम अगन जगते जब उर में
बनते पावन ही विचार।
सरस प्रेम सदा सरसाकर
करें जीवन को साकार।।
लगन बढ़े मीरा की जैसी
कृष्ण चरण अमृत की धार।
भावे मधुरिम सबका आँगन
पगे सदा कृष्ण में प्यार।।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
भागलपुर, बिहार
0 Likes