प्रेरणा दीप
मन कर्म वचन की
मलिनता से बाहर
सद्भाव सत्कर्म सदचिंतन
नव प्रभात बिखराना है
प्रेरणा दीप बन जलना है ।
पुण्य का कुछ पता नही
अगणित पाप किया हमने
दर्द किसी का बाँट न पाया
अश्रुकोश अब न लूटना है
प्रेरणा दीप बन जलना है ।
निहित स्वार्थ के वशीभूत
निकृष्ट को उत्कृष्ट मान
अनुचित पथ राही बना
अन्तःकरण जगा, लौटना है
प्रेरणा दीप बन जलना है ।
अंतस की आसुरी शक्ति को
जड़ मूल उखाड़कर
शुभ चिंतन को सिंचित कर
सुसंस्कारों के बीज बोना है
प्रेरणा दीप बन जलना है ।
क्षण क्षण क्षरित मानव जीवन
सुध नहीं अब भी अंतस की
अहर्निश दीपोत्सव जहाँ
निज धाम एक दिन चलना है
प्रेरणा दीप बन जलना है ।
दिलीप कुमार गुप्ता
प्रधानाध्यापक म. वि.कुआड़ी
अररिया
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