रहमत के बंदे रहीम
आसमां से आया फरिश्ता,
प्यार का सबक सिखलाने,
सरजमीं पर रहमत बरसाने,
चारों तरफ समभाव जताने,
कलम और तलवार था जिनका,
आसानी से एक ही कमान,
मानव प्रेम के सूत्रधार मसीहा,
कहलाए रहमत के बंदे रहीम।।
मध्यकालीन युग के उन्मुक्त कवि,
सभी विधाओं में थे पारंगत,
सोच थी उनकी बेमिशाल,
रखते थे सबका ख्याल,
धार्मिक परंपरा की अद्भुत मिशाल,
बहुमुखी प्रतिभा के धनी भाव थे उनके लाजवाब,
अकबर के नवरत्नों में था उनका नाम,
कहलाए रहमत के बंदे रहीम।।
बैरम खां, सुल्ताना बेगम का सितारा,
लाहौर में जन्मा था सबका दुलारा,
काव्य रचना का गुण था मिला उन्हें विरासत में,
मुस्लिम होते हुए भी धर्म अपनाया हिंदू का,
उनके कार्यों के बदले मिर्जा खां की मिली उपाधि,
अवधी, ब्रजभाषा, खड़ी भाषा का करते उपयोग
बाबर की आत्मकथा का, तुर्की से फारसी में किया अनुवाद,
कहलाए रहमत के बंदे रहीम।।
रहीम के दोहे ने जग को था मोहा,
सबों ने उनके कार्यों को था खूब सराहा,
एक एक दोहे में था सबक बड़ा ही खास,
सोच समझ और प्रेम, व्यवहार, उनका था दास,
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरे चटकाय,
टूटे पे फिर न जुड़े, जुड़े गांठ पड़ी जाय,
1627 में ली अंतिम सांस, हो गई शाम,
कहलाए रहमत के बंदे रहीम।।
विवेक कुमार
(स्व रचित एवं मौलिक)
मुजफ्फरपुर, बिहार